राम-नाम का अहम – A Poem By Nishant Basu
जो राम शांति और शालीनता की पराकाष्ठा हैं , उनके नाम को लेकर उनके भक्तो का अहम सुनाती कविता।
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अहम ?
मेरे राम में कैसा अहम?
जिसने सबरी के आधे-जूठे,
बेर को खाया,
इक बन्दर को गले लगाया,
उस भगवान में कैसा अहम?
तब फिर ये जयकार में उसके ,
अहम कहाँ से आया?
ये नाम लिए है राम का पर,
ये किस कुंठा का साया?
शक्ति की उसने पूजा की,
तब शक्ति पर
हाथ उठाना,
नाद-नयन से घूर के जाना,
किससे सीखा?
कौन अयोध्या ऐसी है,
नवीन रामायण,
किसने लिक्खा?
ये माया है,
रावण नया सा वेष लिए,
अयोध्या,धर पर आया है,
उसने जनता में घुलमिलकर,
राम जपा,
और सीता भी,
घोर-घोर के जहर पिलाकर
अहम को उनके,जीता भी,
प्रजा की सेवा में,
तन मन सबसे लीन है जो
कहता है कि वो,द्रोही है,
खुद माया में लोत पोत,
हट-भक्ति का ढोंग रचे,
और चीखे की,विद्रोही है
सही गलत जो भी हो,
ढोंग रचा के फूट तो डाली,
आराध्य-प्रेम सब भट्टी में,
खूब चली आपस में गाली
लंका की उस हार का बदला,
है रावण ने आज लिया
राम बेबस और मूक रहे,
अयोध्या उसने बाट दिया …”
— निशांत