कुछ मीठी यादें – A Narrative Poetry By Pratyush Kumar Pani
आज सारे देश भर में लॉकडाउन है, काफ़ी लोग कई कारणो की वज़ह से परेशान है, कुछ लोगों से उनका रोज़गार छीन गया है और कुछ लोगों को कोरोना की वज़ह से अस्पताल के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है जो कोरोना की वज़ह से परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिला है। लॉकडाउन किसी के लिए खुशियां तो किसी के लिए दुख लाया है – आइए कविता के माध्यम से जानते है।
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काश ये लॉकडाउन कभी खतम ना हो….
इनसे जूड़ी चीज़ कभी खतम ना हो…
कोरोना खतम हो जाए ये दुआ है मेरी
बस ये लॉकडाउन ऐसे चलता रहे ये कभी खतम ना हो..
साल है २०२० का तो ज़रा स्मरण में चलते हैं
२०१७ के अगस्त महीने को आज हम फिर याद करते हैं
कुछ खास न था उस महीने में
बस आम ज़िन्दगी गुज़ार रहा था
मेट्रो में बैठे कई लोगों में
मैं अकेला बड़बड़ा रहा था…
हाथ में फोन लए के.के के गाने सनु रहा था…
ऐसे में फ़ोन आता है कॉलेज से
आपका एडमिशन होगया है इस कॉलेज में, सब छोड़ आये अगले सवेरे में
ख़ुशी से फूले ना समा रहे थे मेरे माँ-बाप
पर कहीं न कहीं मेरे माँ के अंदर ये डर ज़रूर था
कहीं दूर तो नहीं हो जाएगा हमसे
अपने बच्चों की चिंता हर किसी को होती है
चाहे वो पहले दिन का स्कूल हो या जाना अति दूर हो।
हफ्ते भर बाद ट्रेन की टिकट बुक हुई
मैं चल पड़ा था अनजान सफर में जो चौबीस घंटों में पूरी हुई …
ज़िन्दगी क वो चौबीस घंटे हर पल याद आते हैं..
पहली बार चला था एक अकेले सफर में माँ-बाप बड़े याद आते हैं…
एक बैग में सामान था तो दूसरी बैग में खाने की चीज़े
दोनों मिलकर भी सामान उतना न था जितना मेरे आई बाबा की यादों की तिजोरी।
चाबी सबकी थी पर कोई सामन खोलना नहीं चाहता था..
यादों की तिजोरी को खोलकर कभी रोना नहीं चाहता था।
फ़ोन पड़ा था साइड में तोह सोचा थोड़ी बातें करता हूँ व्हाट्सप्प पे
ऐसे में बगल वाली सीट पर बैठा शक्श कहता मुझसे
कुछ बातें अधूरी रह जाएंगी, पूरी बात तो करले इनसे।
मेरी माँ थी बड़ी स्ट्रांग बुलाता था उन्हें आयरन लेडी
पर अंदर से बिलकुल कोमल एकदम मोम के जैसी।
ट्रेन की सीटी बज चुकी थी, पटरी से जाना उनका तय हो गया
मेरी माँ स्टेशन में रुकी हुई थी अब दिल थोड़ा सहम गया
वो हाथ हवा में हिला रही थी मैं भी उन्हें देखता रह गया
वो रो रही थी मुझे जाता देख मुझे भी रोना आ गया।
फ्लैशबैक से वापस आते है कविता थोड़ी सुनाते हैं
आज इतने सालों बाद घर आकर थोड़ा अच्छा लगा,
यादों की तिजोरी को थोड़ा और भरना मुझे अच्छा लगा।
ज़िन्दगी की रफ़्तार थमी है तो कॉलेज का भार हटा…
माँ से भिछड्ने का गम था, आज उसका भी भार हटा।
अगर लॉकडाउन के चलते परिवार निलते हैं तो खुदा से फरियाद करता हूँ
ऐसे लॉकडाउन हो जो बिछड़ों को मिलादे
अगर लोग इसे सज़ा कहते हैं तो मैं अपनी दुआ में ये सज़ा मांगता हूं…
लॉकडॉउन कभी ना खतम ऐसी मैं एक दआु मांगता हूं।
— प्रत्यूष कुमार पाणि